पोटका विधानसभा : भूमिज प्रत्याशी का रहेगा दबदबा या टूटेगा सिलसिला, संजीव के लिए सीट बचाने तो डॉ. मीरा मुंडा के लिए मिथक तोड़ने की चुनौती
Dumaria (Sanat Kumar Pani) : पोटका विधानसभा में हमेशा भूमिज जनजाति का दबदबा रहा है। भूमिज जनजाति की जनसंख्या पोटका विधानसभा क्षेत्र में अधिक है और अधिकतर विधायक इसी समुदाय से चुने गए हैं। 1977 से इस विधानसभा से भूमिज प्रत्याशी का दबदबा रहा है। सभी पार्टियां हर चुनाव में भूमिज प्रत्याशी पर ही दांव लगाती रही हैं। इस परिपाटी से अलग भाजपा ने इस बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी डॉ. मीरा मुंडा पर दांव लगाया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने अपनी पूरी ताकत लगाकर डॉ. मीरा मुंडा को जीत दिलाने की कोशिश की है। भाजपा के स्थानीय दावेदार रहे नेताओं ने डॉ. मीरा मुंडा को शुरुआत में प्रत्याशी बनाए जाने का खुलकर विरोध किया था। भाजपा के टिकट के दावेदार रहे नेताओं के समर्थकों ने डॉ. मीरा मुंडा के पक्ष में कितना जोर लगाया है, इसका आंकलन चुनाव परिणाम आने के बाद ही किया जा सकता है।
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वहीं झामुमो प्रत्याशी संजीव सरदार ने पूरे चुनाव अभियान के दौरान भाजपा प्रत्याशी डॉ. मीरा मुंडा के बाहरी होने का मुद्दा जोरशोर से उठाकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। अन्य समाज से विधायक चुनकर आए तो भूमिज समाज को आने वाले समय में टिकट की दावेदारी से मरहूम होना पड़ सकता है, भूमिज समाज को ये मैसेज देने की कोशिश की गई। पोटका के टांगराइन पंचायत के मुखिया असीत सरदार के मुताबिक 81 विधानसभा में केवल पोटका विधानसभा से भूमिज समाज को प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलता है। इस आधार पर भूमिज समाज का समर्थन संजीव सरदार को मिलने की उम्मीद है।
भूमिज फैक्टर, बाहरी प्रत्याशी, अंतर्विरोध जैसी चुनौतियां भाजपा प्रत्याशी डॉ. मीरा मुंडा के सामने रहीं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा जैसे अनुभवी नेता ने इन चुनौतियां को बखूबी से सामना किया और रणनीति बनाकर चुनाव में वर्तमान विधायक संजीव सरदार के सामने बड़ी चुनौती पेश करने में सफल रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं का दावा है कि डॉ. मीरा मुंडा इस बार भूमिज प्रत्याशी के ही जीतने की मिथक को तोड़ सकती हैं जबकि झामुमो कार्यकर्ताओं का दावा है कि इस बार भी भूमिज प्रत्याशी का दबदबा बरकरार रहेगा।