दलमा के जंगल से शाल वृक्षों की तस्करी, ग्रामीणों ने लकड़ियों से लदे ट्रैक्टर को वन विभाग को सौंपा
वन विभाग ने सोमाडीह से जब्त किया ट्रैक्टर, दर्ज होगी प्राथमिकी
Patamda: दलमा के जंगल में चोरी छिपे महंगी लकड़ियों की तस्करी करने वाले लोग अब खुलेआम दिन में ही यह अवैध धंधा करने लगे हैं। स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि पिछले कई वर्षों से रात के अंधेरे में क्षेत्र के लकड़ी माफियाओं द्वारा बोड़ाम थाना क्षेत्र अंतर्गत पहाड़पुर गांव के पास मोटे- मोटे शाल एवं अन्य महंगी लकड़ियों को डंप किया जाता था और वहां से जमशेदपुर समेत बाहर के बाजारों में बड़े ट्रक के माध्यम से भेजा जाता था।
ग्रामीणों में नगेन सिंह व मिदु सिंह का आरोप है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन एवं वन विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत के कारण अब दिन के उजाले में ही तस्करी को अंजाम दिया जा रहा है। शुक्रवार को दलमा अंतर्गत कोयरा गांव से सटे कन्याडूबा एवं बुरुबोहाल जंगल से एक ट्रैक्टर को पहाड़पुर की ओर ले जाने के क्रम में दोपहर करीब 2 बजे सोमाडीह के ग्रामीणों ने पकड़ लिया। ग्रामीणों में झामुमो के प्रखंड कोषाध्यक्ष काजल सिंह के नेतृत्व में काफी संख्या में लोग शामिल थे। इसकी सूचना मिलने पर झामुमो नेता सुभाष कर्मकार ने वन विभाग के अधिकारी से दूरभाष पर बात करते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की। वन विभाग की टीम ने शाम साढ़े 4 बजे घटनास्थल पर पहुंचकर ट्रैक्टर को जब्त किया। इससे पूर्व ग्रामीणों की वन विभाग की टीम के साथ तीखी बहस भी हुई। ग्रामीणों का कहना था कि जब उनलोग जंगल से डाली या पत्ता लेने जाते हैं तो वन विभाग केस कर देता है जबकि इतने बड़े पैमाने पर हो रही तस्करी विभाग को दिखाई नहीं देती है।
मौके पर मौजूद वनपाल राजा घोष ने आश्वासन दिया कि इस मामले में कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ग्रामीणों का आरोप है कि यहां पहुंचे लकड़ी कारोबारी आशीष मिश्रा व ट्रैक्टर मालिक उनसे 30 हजार रुपए लेकर गाड़ी छोड़ने की मांग कर रहे थे। ग्रामीणों ने बताया कि ट्रैक्टर मालिक इसे रैयती जमीन की लकड़ी बता रहे थे। दूसरी ओर ग्रामीणों के साथ जंगल के अंदर निरीक्षण करने पर पता चला कि करीब 30 वर्ष पुराने शाल के पेड़ों को आरी मशीन से काटकर गांव से करीब 3 किमी दूर जंगल से ट्रैक्टर से निकाला गया है। अब तक 29 ट्रैक्टर लकड़ी की बिक्री की जा चुकी है और यह 30 वां ट्रिप था। जंगल के अंदर 8 से 10 लकड़ी का लॉग पड़ा हुआ है। बताते हैं कि पहले एक ट्रैक्टर को डंप करने के बाद दूसरे ट्रिप को पकड़ा गया जबकि तीसरे ट्रिप का माल जंगल में पड़ा हुआ रह गया। ग्रामीणों के मुताबिक एक ट्रैक्टर लकड़ी की अनुमानित कीमत करीब 1 लाख रुपए होगी। इतने बड़े पैमाने पर हो रही तस्करी पर वन विभाग की नजर नहीं पड़ना अपने आप में बड़ा सवाल है।