एनडीए: 2014 के मुकाबले इस बार ज्यादा मजबूत, रामचंद्र सहिस को मिल सकता है फायदा, पटमदा में मुकाबला त्रिकोणीय, पढ़ें विस्तृत रिपोर्ट
Patamda (Kalyan Kumar Gorai): 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा व आजसू पार्टी के अलग-अलग चुनाव लड़ने तथा झामुमो, कांग्रेस और राजद का महागठबंधन होने से झामुमो प्रत्याशी मंगल कालिंदी को भारी बढ़त हासिल हुई थी और जुगसलाई विधानसभा सीट पर 10 साल के बाद झामुमो ने वापसी की थी। करीब 22 हजार के अंतर से झामुमो प्रत्याशी मंगल कालिंदी अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी मुचीराम बाउरी को हराकर पहली बार विधायक बनने में सफलता हासिल की।
इस चुनाव में मंगल कालिंदी को करीब 88,000, मुचीराम बाउरी को 66,000 और रामचंद्र सहिस को 46,000 वोट हासिल हुए थे। इसी के साथ ही महागठबंधन को 47 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला। जबकि पूरे राज्य में भाजपा को 25 सीटें और आजसू पार्टी को सिर्फ 2 सीटें मिल पाई थीं।
2014 के चुनाव की बात करें तो भाजपा और आजसू पार्टी के एनडीए गठबंधन के तहत साथ चुनाव लड़ने की वजह से 42 सीटें (भाजपा को 37 और आजसू को 5) मिली थीं। हालांकि तब झामुमो, कांग्रेस तथा राजद के बीच गठबंधन नहीं हो पाया था और अलग-अलग चुनाव लड़ने का हश्र तीनों पार्टियां देख चुकी हैं। इसमें झामुमो को 19 व कांग्रेस को 6 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि राजद का तो खाता भी नहीं खुला था।
इसके बाद 2019 में तीनों पार्टियों का गठबंधन होने से झामुमो को अब तक का सर्वाधिक 30, कांग्रेस को 16 व राजद को 1 सीट मिली थी। दूसरी ओर 2019 में करारी हार के बाद लगातार मंथन करने के पश्चात भाजपा और आजसू पार्टी ने हर हाल में एनडीए को एकजुट करने व गठबंधन के तहत ही चुनाव लड़ने का निर्णय ले लिया था। दोनों पार्टियों के बीच चली कई दौर की बैठक व बातचीत के बाद भाजपा हाई कमान ने आजसू के अलावा जदयू व लोजपा के साथ गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
2024 के चुनाव में दोनों ही पार्टियां (भाजपा व आजसू) काफी उत्साह व ऊर्जा के साथ मैदान में हैं। इस बार 2014 की भांति जुगसलाई विधानसभा सीट पर आजसू पार्टी की ओर से प्रत्याशी खड़ा किया गया है और पार्टी ने पूर्व मंत्री सह दो बार के विधायक (2009 और 2014) रामचंद्र सहिस पर ही दांव लगाया है।
इस बार खास बात यह है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) की ओर से साझा प्रत्याशी खड़ा किया गया है, जबकि 2014 में एनडीए गठबंधन से आजसू पार्टी प्रत्याशी रामचंद्र सहिस व झामुमो से मंगल कालिंदी एवं कांग्रेस से दुलाल भुइयां चुनावी मैदान में थे। इसमें मुस्लिम मतदाताओं के बंटने और शहरी मतदाताओं व भाजपा कार्यकर्ताओं का साथ मिलने से सीधा फायदा एनडीए गठबंधन को मिला और 25 हजार के भारी मतों अंतर से रामचंद्र सहिस दूसरी बार विधायक बनने में सफल रहे थे। रामचंद्र सहिस को करीब 82,000 व उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी झामुमो के मंगल कालिंदी को 57,000 एवं कांग्रेस के दुलाल भुइयां को 42,000 वोट मिले थे।
इसमें एक बात खास यह रही कि भारी मतों के अंतर से मिली जीत के बावजूद रामचंद्र सहिस (27,200) को पटमदा तथा बोड़ाम प्रखंड में मंगल कालिंदी (28,000) से करीब 800 वोट कम प्राप्त हुए थे, जिसको लेकर वह हमेशा चर्चा करते रहे कि आखिर अपने ही गढ़ में कम वोट क्यों मिले? यह आंकड़ा उन्हें सोचने को मजबूर कर दिया था। इसके बारे में स्थानीय लोगों द्वारा कई कारण गिनाए जाते हैं। पहला यह कि रामचंद्र सहिस के खिलाफ उस वक्त एंटी इनकॉमबेन्सी अधिक थी और भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर संबंध नहीं थे।
दूसरा कारण 3 बार के विधायक व मंत्री रहे दुलाल भुइयां के कांग्रेस प्रत्याशी बनने से उनका पुराना वोट बैंक वापस होना। क्योंकि पटमदा में आयोजित सोनिया गांधी की रैली में उमड़ी भीड़ के बाद माहौल ऐसा बना कि लोगों ने खुलकर उनका साथ दिया और हाथ छाप पर दुलाल भुइयां को करीब 19,000 वोट दे दिया था। जबकि 5 साल पूर्व 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी रही रीतिका मुखी को सिर्फ 3 हजार ही वोट मिले थे इस क्षेत्र से।
कहा जाता है कि 2014 के चुनाव में ऊपर से भले ही एनडीए गठबंधन की घोषणा कर दी गई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर दोनों पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच दूरी कम नहीं होने पर कुछ वोट झामुमो प्रत्याशी मंगल कालिंदी को भी भाजपा समर्थकों ने दिला दी थी। क्योंकि रामचंद्र सहिस से नाराज दर्जनों भाजपा नेता व कार्यकर्ताओं ने रात के अंधेरे में मंगल कालिंदी के साथ गुप्त बैठकें करते हुए उन्हें समर्थन का वादा किया था। हालांकि गुटों में बंटे भाजपा कार्यकर्ताओं का एक समूह ने उस वक्त सहिस का भी समर्थन किया था। झारखंड बनने के बाद पहली बार एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन (सेक्युलर दल) के बीच सीधी लड़ाई हो रही है। इसमें दोनों ही दल या गठबंधन मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं।
हालांकि इस बार पटमदा -बोड़ाम के 155 बूथों में से अधिकांश पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। राज्य में नई राजनीतिक पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) का उदय होने और खासकर कुड़मी बहुल क्षेत्रों में लहर चलने से मुकाबला रोमांचक हो गया है। अनुमान है कि आजसू (केला छाप) के पारंपरिक वोट बैंक पर जेएलकेएम (कैंची छाप) की सेंधमारी होने से उसका खेल ग्रामीण क्षेत्रों में बिगड़ सकता है। जेएलकेएम प्रत्याशी विनोद स्वांसी को ग्रामीण क्षेत्रों में कुड़मी समुदाय के अलावा अन्य वर्गों का भी वोट मिलने का दावा उनके समर्थक कर रहे हैं जिसकी बड़ी वजह है 8 नवम्बर को जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत बोड़ाम हाटतोला मैदान में आयोजित जनसभा में उमड़ी भारी भीड़। इसके कारण क्षेत्र में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। लेकिन आजसू प्रत्याशी के लिए इस बार राहत की बात यह है कि उसके प्रमुख सहयोगी दल भाजपा के नेता और कार्यकर्ता सभी 155 बूथों में एकजुट नजर आ रहे हैं और अपने मजबूत संगठन की बदौलत रामचंद्र सहिस को बढ़त दिलाने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं।
अब देखने वाली बात यह है कि पूरे जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र में शहरी वोटर किसके पक्ष में अधिक मतदान करते हैं क्योंकि इस बार के चुनाव में शहरी वोटर ही हार जीत तय करने वाले हैं। कुल मिलाकर पूरे जुगसलाई विधानसभा सीट पर कांटे का मुकाबला है इसका अनुमान बुधवार को प्रथम चरण में होने वाले मतदान के बाद या खुलासा 23 को मतगणना के बाद ही हो सकेगा।